Book Title: Jain evam Bauddh Yog
Author(s): Sudha Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 250
________________ २३६ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन १७७. बौद्ध धर्म-दर्शन, आचार्य नरेन्द्रदेव, पृ०-९७-९८ १७८. विषयों के अनुराग को कामच्छन्द कहा जाता है। व्यापाद का अभिप्राय हिंसा है। स्त्यान चित्त की अकर्मण्यता और मिद्ध आलस्य को कहा जाता है। औद्धृत्य का अभिप्राय चित्त की अव्यवस्थितता तथा कौकृत्य का चित्त में खेद-पश्चाताप आदि का होना हैं। विचिकित्सा यानी संशय। १७९. सेय्यथापि महाराज, यथा आनण्यं यथा आरोग्यं यथा बन्धनामोक्खं यथा भुजिस्सं यथा खेमन्तभूमि, एवमेव खो, महाराज, भिक्खु इमे पञ्च नीवरणे पहीने अत्तनि समनुपस्सति। दीघनिकाय, खण्ड-१, पृ०-६४-६५ १८०. पकतिचित्तेही ति पाकतिकेहि कामावचरचित्तेहि । बलव .......प...... चित्तेकग्गतानि भावनाबलेन पटुतरसभावप्पत्तिया। विसुद्धिमग्ग, खण्ड-१, पृ०-२९४-२९५ १८१. योगशास्त्र-एक परिशीलन, उपा० अमरमुनि, पृ०-३०-३१ १८२. बौद्ध दर्शन-मीमांसा, आचार्य बलदेव उपाध्याय, पृ०- ३०७-३०८ १८३. ततो तस्मि येवारम्मणे चत्तारि पंच वा जवनानि जवन्ति----विसुद्धिमग्ग, खण्ड-१, पृ०-२९४ १८४. सो विविच्चेव कामेहि, विविच्च अकुसलेहि धम्मेहि सवितक्कं सविचार विवेकजं पीतिसुखं पढमं झानं उपसम्पज्ज विहरति। दीघनिकाय, खण्ड-१, पृ० ६५ १८५. तत्थ कामच्छन्दो, ब्यापादो, थिनमिद्धं उद्धच्चकुक्कुच्चं विचिकिच्छा ति इमेसं पञ्चनं नीवरणानं पहानवसेन---ज्ञानं उप्पज्जति। तेनस्सेतानि पहानङ्गानी ति वुच्चन्ति। . विसुद्धिमग्ग, खण्ड-१, पृ०- ३१०-३११ १८६. वही, पृ०-३०८ १८७. एवमधिगते पन एतस्मि तेन योगिना ---आकारापरिग्गहेतब्बा। एवं हि सो नट्टे वा तस्मि ते आकारे सम्पादेत्वा पुन उप्यादेतं.... सक्खिस्सति। वही, पृ०-३२०-३२१ १८८. पंच वसिया। आवज्जनवसी, समापज्जनवसी, अधिट्ठानवसी, बुट्ठानवमी पच्चवेक्खणवसी। पटिसम्मिदामग, पृ०-११२ १८९. पठमं ज्ञानं यत्थिच्छकं यदिच्छकं यावतिच्छकं आज्जति, आज्जनाय दन्धयितत्तं नत्थीति आवज्जनवसी। वही, पृ०-११२-११३ १९०. वही, पृ०-११३ १९१. वही, पृ०-११३ १९२. वही, पृ०-११३ १९३. वही, पृ०-११३ १९४. भिक्खु वितक्कविचारानं खूपसमा अज्झत्तं सम्पसादनं चेतसो एकोदिभावं अवितक्कं अविचारं समाधिजं पीतिसुखं दुतियं झानं उपसम्पज्ज विहरति-- सेय्यथापि, महाराज, उदकरहदो गम्भीरो---अनुपवेच्छेय्य। अथ खो तम्हा व उदकरहदा सीता वारिधारा उब्भिज्जित्वा तमेव उदकरहदं सीतेन वारिना अभिसन्देय्य ...... अफ्फुट अस्स। दीघनिकाय, खण्ड-१, पृ०-६५-६६ १९५. इमस्मि पन झाने वितक्कविचारपलिबोधाभावेन लद्धोकासा बलवती सद्धा, बलवसद्धासहायपटिलाभेनेव च समाधि पि पाकटो। विसुद्धिमग्गो, खण्ड-१, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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