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जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन
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हैं जबकि चारों प्रकार के सम्यक् - व्यायाम समाधि की सामग्री हैं । १४२ समाधि का अर्थ होता है - समाधान। समाधि को परिभाषित करते हुए विसुद्धिमग्गो में कहा गया है कि कुशल चित्त की एकाग्रता ही समाधि है । १४३ जिसका एक ही आलम्बन होता है वह एकाग्र और उसका भाव एकाग्रता कहलाती है । उपशमन समाधि का स्वभाव है । जिस प्रकार वायु के प्रवेग से रहित स्थान में दीपक की शिखा अपने स्थिर स्वभाव को प्राप्त कर लेती है, उसी प्रकार समाधि में चित्त अपनी स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त कर लेता है।
समाधि के प्रकार
समाधि के प्रकार के विषय में अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग ढंग से व्याख्या की है। किसी ने समाधि के मुख्य दो प्रकार बताये हैं, तो किसी ने उसी को व्याख्यायित करके छः प्रकार बता दिये हैं। परन्तु समाधि के उन छः प्रकारों का समावेश दो प्रकार की समाधि में हो जाता है। समाधि के प्रकार इस प्रकार हैं
एकविध समाधि
समाधि के सामान्य लक्षण को ध्यान में रखकर भेद-प्रभेदों पर विचार करते हैं। तो समाधि एक ही प्रकार की प्रतीत होती है, क्योंकि किसी प्रकार का विक्षेप न होना ही इसका प्रमुख लक्षण है। विक्षिप्तता का अभाव होने से उत्पन्न सुख इसका आसन्न कारण है । १४४
द्विविध समाधि
समाधि को चार विकल्पों द्वारा दो भागों में विभक्त किये जाने के कारण द्विविध समाधि कहा गया है। चार विकल्प निम्न हैं
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१. उपचार समाधि तथा अर्पणा समाधि |
२. लौकिक समाधि तथा लोकोत्तर समाधि ।
उपचार समाधि जिस प्रक्रिया में दस कर्म-स्थानों के कारण चित्त की एकाग्रता प्राप्त होती है वह उपचार समाधि कहलाती है । यद्यपि इस समाधि में पांच नीवरणों का प्रहाण हो जाने से चित्त में एकाग्रता आ जाती है, किन्तु इसमें वितर्क, विचार, प्रीति, सुख एवं एकाग्रता आदि ध्यानांगों का प्रादुर्भाव नहीं होता है । १४५ अर्पणा समाधि के समीपवर्ती होने के कारण इसे उपचार समाधि कहा गया है।
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