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योग-साधना का आचार पक्ष
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मनोगुप्ति सामान्य भाषा में राग-द्वेषादि कषायों से मन को निवृत्त करना मनोगुप्ति है। उतराध्ययन के अनुसार समरम्भ, समारम्भ और आरम्भ आदि हिंसक प्रवृत्तियों में जाते हुए मन को रोकना मनोगुप्ति है । १२१
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वचनगुप्ति - अहितकारी एवं हिंसाकारी भाषा का प्रयोग नहीं करना वचनगुप्ति है। योगशास्त्र में असत्य भाषण आदि से निवृत्त होना या मौन धारण करने को वचनगुप्ति कंहा गया है।१२२ उत्तराध्ययन में अशुभ प्रवृत्तियों में जाते हुए वचन पर निरोध करने को वचनगुप्ति कहा गया है।१२३ इसी प्रकार नियमसार में पाप के हेतुभूत स्त्रीकथा, राजकथा, चोरकथा, मंत्रकथा आदि वचनों के परिहार अथवा असत्यादि की निवृत्ति करनेवाले वचन के प्रयोग को वचनगुप्ति कहा गया है । १२४
कायगुप्ति – शारीरिक क्रियाओं द्वारा होनेवाली हिंसा से बचना काय गुप्ति है। नियमसार के अनुसार बन्धन, छेदन, मारण, आकुंचन तथा प्रसारण आदि शारीरिक क्रियाओं से निवृत्ति कायगुप्ति है । १२५ अतः समरम्भ, समारम्भ और आरम्भपूर्वक कायिक प्रवृत्तियों का निरोध करना कायगुप्ति कहलाता है । १२६
उपर्युक्त तीनों गुप्तियों का मुख्य उद्देश्य है- साधक को अशुभ प्रवृत्तियों से दूर रखना। जैसाकि उत्तराध्ययन में कहा भी गया है- मुनि जीवन के लिए इन तीन गुप्तियों का विधान अशुभ प्रवृत्तियों से निवृत्ति हेतु है । १२७ पाँच समितियों का वर्णन पूर्व में किया जा चुका है।
बारह अनुप्रेक्षाएँ
अनुप्रेक्षा का अर्थ होता है - गहन चिन्तन करना । आत्मा द्वारा विशुद्ध चिन्तन होने के कारण इसमें सांसारिक वासना - विकारों का कोई स्थान नहीं रहता है, फलतः साधक विकास करता हुआ मोक्षाधिकारी होने में समर्थ होता है । जब आत्मा में शुभ विचारों का उदय होता है, तब अशुभ विचारों का आना बन्द हो जाता है । परन्तु साधक की इन्द्रियाँ तथा मन साधक को सर्वदा अपने मार्ग से विचलित करने एवं रागद्वेषादि भावों को बढ़ाने के लिए तत्पर रहती हैं। इन सब भावों पर विजय प्राप्त करने के लिए ही अनुप्रेक्षाओं का विधान किया गया है, जिसके अन्तर्गत जीवों में विरक्त भावना उदित करने हेतु संसार की अनित्यता का विभिन्न प्रकार से विचार करने पर बल दिया गया है। अनुप्रेक्षाओं को वैराग्य की जननी भी कहा जाता है। अतः साधक को धर्म-प्रेम, वैराग्य, चारित्र की दृढ़ता तथा कषायों के शयन के लिए इनका अनुचिन्तन करते रहना चाहिए । १२८ अनुप्रेक्षाएँ बारह हैं । १२९ इन्हें भावना के नाम से भी जाना जाता है।
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