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जैन एवं बौद्ध योग का तत्त्वमीमांसीय आधार
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जैन योग का तत्त्वमीमांसीय आधार
सत्
जैन तत्त्वमीमांसा का आधारभूत सिद्धान्त सत् या द्रव्य का विवेचन है। जैन दर्शन में सत्, तत्त्व, अर्थ, द्रव्य, पदार्थ, तत्त्वार्थ आदि शब्द लगभग एक ही अर्थ में व्यवहृत हुए देखे जाते हैं। सत् या तत्त्व (Reality) के विषय में दर्शनों में मतैक्य नहीं है। बौद्ध दर्शन के अनुसार 'सत्' निरन्वय क्षणिक है तो सांख्य के अनुसार चेतन तत्त्वरूप पुरुष कूटस्थ-नित्य तथा अचेतन तत्त्वरूप प्रकृति परिणामी-नित्य अर्थात् नित्यानित्य है। वेदान्त के अनुसार ब्रह्म एकमात्र सत्य है तो जैन दर्शन के अनुसार तत्त्व सापेक्षत: नित्य-अनित्य, सामान्य-विशेष, कूटस्थ तथा परिवर्तनशील है। जैनदर्शन का सत् अनन्त धर्मोंवाला है। इन अनन्त धर्मों में से कुछ स्थायी होते हैं जो सदा वस्तु के साथ होते हैं, जिन्हें गुण कहते हैं। कुछ धर्म ऐसे होते हैं जो बदलते रहते हैं, जिन्हें पर्याय कहते हैं। सोना में सोनापन गुण तथा अंगूठी, कर्णफूल आदि बाह्यरूप पर्याय हैं। पर्याय अस्थायी हैं। एक पर्याय के नष्ट होने पर दूसरा उत्पन्न होता है । इसी आधार पर सत् को परिभाषित करते हए उमास्वाति ने कहा है- सत् उत्पाद, व्यय या विनाश और स्थिरता युक्त होता है। आगे चलकर इसे ही दूसरे रूप में परिभाषित किया गया है- गुण और पर्यायवाला द्रव्य है। इसमें उत्पाद
और व्यय के स्थान पर पर्याय आ गया और ध्रौव्य के स्थान पर गुण। उत्पाद और व्यय परिवर्तन का सूचक है तथा ध्रौव्य नित्यता का। परन्तु उत्पाद एवं व्यय के बीच एक प्रकार की स्थिरता रहती है, जो न तो कभी नष्ट होती है और न उत्पन्न ही। इस स्थिरता को ध्रौव्य एवं तद्भावाव्यय भी कहते हैं। यही नित्य का लक्षण है। आचार्य कुन्दकुन्द ने द्रव्य की व्याख्या कुछ इस प्रकार की है - जो अपरित्यक्त स्वभाववाला है; उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य युक्त है; गुण और पर्याययुक्त है, वही द्रव्य है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना उचित जान पड़ता है कि कहीं-कहीं द्रव्य और सत् को एक-दूसरे से भिन्न माना गया है।
अनुयोगद्वार में तत्त्व का सामान्य लक्षण द्रव्य तथा विशेष लक्षण जीवद्रव्य और अजीवद्रव्य माना गया है। इसका अभिप्राय यह है कि द्रव्य और तत्त्व कमोवेश अलगअलग तथ्य नहीं हैं। इस संदर्भ में डा० मोहन लाल मेहता के विचार कुछ इस प्रकार हैंजैन आगमों में सत् शब्द का प्रयोग द्रव्य के लक्षण के रूप में नहीं हुआ है। वहाँ द्रव्य को ही तत्त्व कहा गया है और सत् के स्वरूप का सारा वर्णन द्रव्य-वर्णन के रूप में रखा गया है।११
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