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जैन एवं बौद्ध योग-साहित्य
तत्कालीन समाज में वह मागही या मागधी कही जाती थी, उसे ही आज पालि के नाम से जाना जाता है।
जिस प्रकार वैदिक परम्परा का मूल साहित्य वेद है, जैन परम्परा का मूल साहित्य द्वादशांग है, उसी प्रकार बौद्ध परम्परा का मूल साहित्य त्रिपिटक है। तीनों पिटक के नाम हैं- विनयपिटक, सुत्तपिटक और अभिधम्मपिटक। भगवान् बुद्ध की सम्पूर्ण वाणी इन्हीं तीनों पिटकों में संकलित हैं, जिनका विभाजन कुछ इस प्रकार से है
१. विनयपिटक को तीन विभागों में बाँटा गया है- सुत्तविभंग, खंदक, परिवार। २. सुत्तपिटक पाँच विभागों में विभक्त है- दीघनिकाय, मज्झिमनिकाय, संयुक्तनिकाय,
अंगुत्तरनिकाय और खुद्दकनिकाय। ३. अभिधम्मपिटक जो सात उपविभागों में विभक्त है, यथा-धम्मसंगणी, विभंग,
धातुकथा, पुग्गलपञति, कथावत्थु, यमक और पट्ठान। यद्यपि भगवान् बुद्ध के सम्पूर्ण उपदेश इन तीनों विभागों में विभाजित साहित्य में आ जाते हैं, तथापि यहाँ पर कुछ प्रमुख साहित्यों का ही परिचय प्रस्तुत किया जा रहा हैललितविस्तर
ललितविस्तर बौद्ध संस्कृति का उत्कृष्टम महाकोश है जो मिश्रित संस्कृत भाषा में निबद्ध है। इसे वैपूल्यसूत्र या महावैपूल्यसूत्र भी कहा गया है। यह ग्रन्थ २७ अध्यायों में विभक्त है जिसमें बुद्ध के जन्म से प्रथम उपदेश तक का जीवन दर्शन-निबद्ध है, साथ ही तत्कालीन शुद्धि-रुचिर-लोकजीवन से सम्बन्धित विभिन्न संदर्भो की विभिन्न झलकियाँ भी देखने को मिलती हैं। आचार्य शान्तिभिक्षु शास्त्री ने इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद भी किया है।
यद्यपि यह पद्यमय रचना है, तथापि इसमें पुरानी परम्पराओं का भी दर्शन होता है। महात्मा बुद्ध की प्रारम्भिक ध्यान-साधना का अवलोकन इसमें किया जा सकता है। इसकी रचना प्रथम शती ई० पूर्व मानी जाती है। विसुद्धिमग्गो
आचार्य बुद्धघोष द्वारा रचित यह ग्रन्थ पालि साहित्य की अमूल्य धरोहर है, जिसमें आचार्य बुद्धघोष ने साधकों के लिए योगाभ्यास की युक्तियों को सरल एवं सुबोध भाषा में निबद्ध किया है। बौद्ध धर्म का ऐसा कोई भी अंग नहीं जिसका प्रतिपादन विसुद्धिमग्गो में न किया गया हो। जैसा कि ग्रन्थ के प्रारम्भ में ही बुद्धघोष ने यह स्पष्ट किया है कि
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