Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
View full book text
________________
स्व. सेठ धन्नालालजी काला का
परिचय श्री पन्नालालजी काला हाटपीपल्वा (मध्यभारत) के पुत्र श्री धन्नालालजी लगभग ६० वर्ष से इन्दौर में निवास करते रहे हैं। आपका जन्म वि.सं. १९३१ में हाटपीपल्या में हुमा था। मापने अपनी नवयुवक अवस्था से ही व्यापार में प्रवेश किया और उसमें कुशलता संपादनकर अपना गार्हस्थ्यजीवन सागंद चलाने लगे। अपनी सादगी, सरलस्वभाव और मिलनसारी आदि गुणों के कारण आपने अपने दि. जैन शंडेलवाल समाज में योग्य स्थान बना लिया। पापकी व्यवस्थित दिनचर्या और साविक भोजन पान करते रहने का परिणाम यह हुआ कि जीवन में आपको कोई खास रोग जनित पीडा का अनुभव नहीं करना पड़ा। आपने दि. जैन तीर्थक्षेत्रों की बन्दना मी सकुशल करती। भापके दो भ्राता श्री पूनमचन्दजी और श्री भूरामलजी काला वर्तमान में इन्दौर में ही निवास करते हैं। श्री धन्नालालजी ने करीब ७४ वर्ष की दीर्घ उन पाई और अपने उत्तराधिकारी योग्य पुत्र श्री रतनलालजी काला को सपरिवार छोडकर संसार की स्थिति के अनुसार वि. सं. २००४ की बैशाख शुक्ला ३ को भाप शांतिपूर्वक स्वर्ग सिधारे।
श्री रतनलालजी काला मल्हारगंज दौर में अपने पूज्य पिताजी के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शनार्थ उनकी स्मृति स्वरूप यह पुस्तक प्रकाशित कराई है, जो अमी श्री रतनलालजी कालाकी धर्मपत्नी सौ. रतनबाईजीके रोटतीज व्रत (भाद्रपद शुक्ला ३ के व्रतोद्यापन के शुभ अवसर पर अपने साधी पाठकों की सेवा में सदुपयोग करने के हेतु भेंटकी जारी है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com