Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ शालत्रयान्सद्मनि केतुमाम, स्तम्भालयान्मंगल मंगलाढ्यान् । गृहान् जिनानामतान्कृताच, भूतेशकोणस्थदले यजामि ॥ ओं ह्रीं श्री जिमरत्वालयेभ्यः अर्घ्यम था, मध्येकर्णिकमहदार्यमन पायेऽष्टपत्रौदरे । सिद्धान् सूरियरॉथ पाठकगुरुन साधूश्च दिक पत्रगान् । सद्धमार्गम-चैत्य-चैत्य मिलयोन कोणस्थदिपत्रगान् । भक्त्या सर्वसुरासुरेन्द्रमहितान् तानष्टषेण्ट्या यजे ॥१०॥ ओंनी श्री अहंवादिनवदेवेभ्या पूर्णाध्यम् ॥१०॥ विनायक यन्त्र पूजा परमेष्ठिन्- जगत्त्राण करणे मंगलोत्तम । इतः: शरण तिष्ठ , सन्निहितोस्तु पावनः ॥ ओं ह्रीं असिआरसा मंगलोत्तमशरणभूतेभ्यः पुष्पांजलि क्षिपामि । पंकेरुक्षपातपसमा पुञ्ज सौगन्ध्यमंद्रिः सलिल पवित्र। अहत्पदामाक्ति मंगलाशैन,' प्रत्यूहमाशयमह यजामि ।।' ओं ह्रीं श्री मंगलोत्तमशरणमूतेभ्य, पंचपरमेष्टिभ्यो जलम्।।२॥ काश्मीस्मापूर-कृतद्रवेण,' संसार-तापापहती पुतेन ।' महत्पदा माषित मगलादीन् प्रत्यूह नाशार्थमजामि ओं ह्रीं श्री मंगलोत्तमशरणमूर्तभ्यः पर्चपरमेष्ठिभ्या चंदनम२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106