Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

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Page 83
________________ (७०) निरापेक्षो बंधुर्विदितमहिमा मंगलकरः ॥ शरण्यः साधूनां भवभयभृतामुत्तमगुणो। महावीरस्वामी भयनपथगामी भवतु मे ॥८॥ महावीराष्टकं स्तोत्रं भक्त्या मागेन्दुना कृतं । यः पठेच्छणु याच्चापि स याति परमां गति ॥६॥ पूजन के बाद याचकों को दान, सज्जनों का सम्मान सेवकों को मिष्टान्न वितरण प्रादि देशरीति अनुसार करना चाहिये और व्यवहारियों को उत्सव मनाने के समाचार पत्र मेजना चाहिये। नोट:-जिन्हें अन्तराय कर्म प्रबल हो वे रात्रि में जिन सहस्र नाम का पाठ अवश्य करें। नूतनवर्ण का प्रपात मंगल दाई हो इसके लिये सर्व सपजनों को १०८ बार अनादिमूल मन्त्र का शुद्ध भावों से जाप्य करना चाहिये। नई बही मुहूर्त की सामग्री। अष्ट द्रव्य धुले हुए, धूपदान, दीपक, बालचोल, सरसों । १ २ १ वार - थाली, श्रीफल, लोटा जल का, लच्छा, शास्त्र, धूप, अगरबत्ती १ - पाटे, चौकी, कुंकुम्, केशर घिसी हुई, कोरे पान, दवात, २ २ .5- ) कलम, सिंदूर घी में मिलाकर (श्री महावीयय नमः और लाम शुभ दुकान की दीवाल पर लिखने को) फूलमालायें, नई वहियां आदि। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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