Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
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(७२) जे बलभद्र मुकति में गये, आठकोडि मुनि औरहु भये । श्री गजपंथ शिखर सुविशाल, तिनकेचरण नमू तिहुकाल ॥ राम हनु सुग्रीव सुडील, गव गवाक्ष नील महानील । कोडि निन्याणवै मुक्ति पयान, तुंगीगिरि बंदों धरि ध्यान । नंग अनंग कुमार मुजान, पांच कोडि अरु अर्घ प्रमान । मुक्ति गये सोनागिरशीश, ते बन्दौं त्रिभुवनपति इस ॥ रावण के सुत श्रादि कुमार, मुक्ति गये रेवातटसार । कोडिपंच अरु लाख पचास, ते बंदों धरि परम हुलास ॥ रेवानदी सिद्धवरकूट, पश्चिम दिशा देह जहां छुट । द्वै चक्री दश कामकुमार, ऊठकोडि बंदो भवपार ॥ बडवाणी बडनयर सुचंग, दक्षिण दिशगिरि चूल उतंग । इन्द्रजीत अरु कुम्भ जु कर्ण, ते बंदों भवसायरतर्ण । सवरण भद्र आदि मुनिचार, पावागिरवर शिखर मझार ॥ चेलना नदी तीरके पास, मुक्ति गये वैदी नित तास । फल होड़ी बडगांव अनूप, पश्चिम दिशा दोणगिरि रूप ॥ गुरुदत्तादि मुनीश्वर जहां, मुक्ति गये वो नित तहां ॥ बालि महावालि मुनि दोय,नागकुमार मिलें त्रय होय । श्री अष्टापद मुक्ति मझार, ते वा नित सुरत संभार ॥ अचलापुर की दिशा ईशान, वहां मेढगिरि नाम प्रधान ।
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