Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
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( ८६ )
सामायिकपाठ भाषा
पं० महाचन्द्रजी कृत
प्रथम प्रतिक्रमणकर्म ।
काल अनंत भ्रम्यो जग में सहिये दुख भारी । जन्म मरण नित किये पाप को व्है अधिकारी | कोडिभवांतर मांहि मिलन दुर्लभ सामायिक । धन्य आज मैं मये। योग मिलियो सुखदायक ॥ हे सर्वज्ञ जिनेश किये जे पाप जु मैं अब । ते सव मन बच काय योगकी गुप्ति बिना लभ ॥ आप समीप हजूरमाहिं मे खडो खड़ो सब | दोष कहूं सो सुनो करो नठ दुःख देहिं जब ॥ क्रोध मान मद लोभ मोह माया वश प्रानी । दुःखसहित जे कर्म किये दया तिनकी नहिं श्रानी ॥ बिना प्रयोजन एकइन्द्रि बिगति चउ पंचेन्द्रिय । आप प्रसादहि मिटै दोष जो लग्यो आपस में इक ठार थापिकरि जे पेलि दिये पगतले दाबि करि प्राण हरीने ॥ आप जगतके जीव जिते तिन सबके नायक ।
मोहि जिय ॥
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दुख दीने ।
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