Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
View full book text ________________ (9) विमल विमल मतिदन अंतगर्त है अत:निन। धर्म शर्म शिवकरन शांति जिन शौति विधायिन / / कुन्थु कुन्थुमुख जीवपाल भरनाथ जालहर / मल्लि मल्लसम मोहमन्ल मारण प्रचार घर / मुनिसुव्रत ब्रतकरण नमत सुर संघहि नमिजिन / नेमिनाथ जिन नेमि धर्मरथ माहि ज्ञान धन / / पार्श्वनाथ जिन पार्श्व उपलसम मोक्ष रमापति / बद्धमान जिन नमू ब मव दुःख कर्मकृत // या विधि मै जिन संघरूप चउवीस संख्यधर / स्तऊ नमूं हं बार बार बन्द। शिव सुखकर // पंचम बंदना कर्म। वन्द मैं जिनवीर धीर महावीर सुसन्मति / वईमान अतिवीर वंदिहों मन वच वन कृत // त्रिशला तनुज यद्देश घीश विद्यापति बंद / वन्दं नित प्रति कनकरूप तनु पापनिकन्दं // सिदारथ नृपनन्द द्वन्द दुख दोष मिटावन / दुरित दवानल ज्वलित ज्वाल जग जीव उधारन / / कुण्डलपुर करि जन्म जगत बिय भानन्द कारन। वर्ष बहत्तीर भायु पाय सब ही दुख टारना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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