Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
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(७१)
निर्वाणकांड भाषा।
दोहा । वीतराग बन्दों सदा, भाव महित शिरनाय । कहूं कांड निर्वाण की, माषा सुगम बनाय ।
चापाई १५ मात्रा। अष्टापद आदीश्वर स्वामी, वासु पूज्य चंपापुर नामि । नेमिनाथ स्वामी गिरनार, बन्दी माव भक्ति उरधार ।। चरम तीर्थकर चरम शरीर, पावापुरि स्वामी महावीर । शिखर समेद जिनेश्वर वीसमावसहित वन्दी जगदीश ।। वरदत रायरु इन्द्र मुनींद्र, सायरदा आदि गुणवृन्द । नगर तारवर मुनि उठकोडि, बदा भाव पहित कर जोडि ॥ श्री गिरनार शिखर विख्यात, कोड़ि बहतर अरु सा सात ॥ शंबु प्रधुम्न कुमर हैं माय, अनिरुध आदि नम् तमुपाय । रामचंद्र के सुत वीर, लाडनरिंद आदि गुणधीर ।। पांच कोडि मुनि मुक्ति मझार, पावागिर वंदो निरधारं । पांडव तीन द्रविड राजान, आठकोडि भनि मुक्ति फ्यान । श्री श्रृंजय गिरि के सीस, माव सहित को जगदीश ॥
१-साढ़े तीन करोख ।
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