Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

View full book text
Previous | Next

Page 81
________________ एक बालक पश्चात (६८) पूजन विधि जानूं नहीं, नहिं जानों अाह्वान । और विसर्जन हूं नहीं, क्षमा करो भगवान ।। मंत्र हीन धन हीन हूं, क्रिया हीन जिनदेव । क्षमा करहु गखहु मुझे देहुं चरण की सेव ॥ सर्व मंगल मांगल्यम, सर्व कल्याण कारकम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैन जयतु शासनम् ।। इसके पश्चात खडे होकर आगे लिखा हुआ महावीराटक पढते हुए अर्घावतारण करें। महावीराष्टक स्तोत्र । (शिखरिणी छन्द) यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदचितः । समं भांति प्रौव्यव्ययजनिलसंतोऽन्त रहिताः ॥ जगत्साक्षी मार्ग प्रकटनपरो भानुरिव यो। महावीर स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥१॥ अतानं यच्चक्षुः कमल युगलं स्पंदरहितं । जनान्कोपापायं प्रकटयति वाभ्यंतरमपि ॥ स्फुटं मूतिर्यस्य प्रशमितमयी वातिविमला । महावीर स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥२॥ नमन्नाकेंद्राली मुकुटमणिमाजालजटिलं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106