Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

View full book text
Previous | Next

Page 70
________________ (५७) ओं ह्रीं त्र शुक्ल त्रयोदश्यां जन्ममंगल प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अय॑म् निर्वपामि स्वाहा । मगसिर असित मनोहर दशमी, ता दिन तप आचरना । नृप कुमार घर पारन कीनों, मैं पूजी तुम चरणा मोहि.।। ओं ही मार्गशीर्षकृष्णदशम्यां तपो मंगल मंडिताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अय॑म् निर्वपामि स्वाहा। शुक्ल दशैं बैशाख दिवस अरि, घाति चतुक छय करना । केवल लहि भवि भवसरतारे, जजों चरन सुख भरना मोहि॥ ओं हों बैंशाख शुक्लदशम्यां ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अयम् निर्षपामि स्वाहा। कांतिक श्याम अमावस शिवतिय, पावापुर ते परना । गरफनिवृन्द जजे तित बहुविधि, मैं पूजों मवहरना ॥मोहि.॥ ___ओं: ह्रीं कार्तिक कृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमंडिताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अर्घ्यम निर्वपामि स्वाहा । जयमाला। छन्द हरिगीता। गणधर, असनिधर, चक्रधर, हरधर गदाधर वरवदा । अरु चापधर विद्यासुधर तिरसूल सेवहिं सदा ॥ दुख हरन आनन्द भरन तारन तरन चरन रसाल हैं। सुकुमाल गुनमनिमाल उन्नत, माल की जयमाल है ॥१॥ . . . . . । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106