Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
View full book text ________________
(६०) सरस्वती पूजा ।
दोहा। जनम जरा मृतु क्षय करै हरै कुनय जडरीति । भवसागरसों ले तिरे, पूजै जिनवच प्रीति ॥१॥
ओं ह्रीं श्री जिनमुखोद्भव सरस्वत्यै पुष्पांजलिः । छीरोदाधिगंगा विमल तरंगा, सलिल अभंगा, सुखसंगा। भरि कंचन झारी, धार निकारी, तृषा निवारी, हित चंगा॥ तीर्थकर की ध्वनि गणधर ने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानर्मई । सो जिनवर वानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवनमानी पूज्य भई॥ ओं ही श्री जिनमुखोदभवसरस्वतीदेव्यै जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ करपूर मंगाया चन्दन पाया, केशर लाया रंग भरी। शारदपद वन्दों, मन अभिनंदों, पाप निकंदों दाह हरी ॥
तीर्थ. ॥ चंदनम् ॥ सुखदासकमोद, धारक मोदं प्रति अनुमोदं चंदसमं । बहु भक्ति बढ़ाई, कीरति गाई, होहु सहाइ, मात ममं ॥
तीर्थ. ॥ अमतान् ॥ ३॥ बहु फूल सुवास, विमल प्रकारां, आनंदरासे लाय धरे । मम काम मिटायो, शील बढायो, सुख उपजायो दोष हरे॥
तीर्थ. ।। पुष्पं ॥ ४॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com
Loading... Page Navigation 1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106