Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
View full book text
________________
(६२)
नमों भक्ति उर धार, ज्ञान करे जडता हरें ॥ पहलो आचारांग बखानो, पद अष्टादश सहल प्रमानो । दूजो सूत्रकृतं प्रभिलाषं पद छत्तीस सहस गुरु भाष ।' तीजो ठाना अंग सुजानं, सहस बयालिस पदसरधानं । चौथो संमवायांग तिहारं, चौसठ सहस लाख इकधारम् ॥ पंचम व्याख्याप्रज्ञपति दरसं, दोय लाख अट्ठाइस सहसं || छट्टो ज्ञातृकथा विसतारं, पांच लाख छप्पन हज्जार । सप्तम उपासकाध्ययनंग, सत्तर साहस ग्यारलख भंग || अष्टम अंतकृतं दस ईस, सहस अठाइस लाख तेईस । नवम अनुत्तरदश सुविशाल, लाख बानवें सहस चवालं ॥ दशम प्रश्न व्याकरण विचार, लाख तिरानव सोल हजारं । ग्यारम सूत्रविपाक सु भाखं, एक कोड चौरासी लाख || चार कोडि अरु पंद्रह लाख, दो हजार सब पद गुरुशाखं । द्वादश दृष्टिवाद पनभेदं, इसौं श्राठ कोडि पन वेदं ॥ अडसर लाख सहस छप्पन हैं, सहित पंचपद मिथ्या हन हैं । इक सौ बारह कोडि बखानो, लाख तिरासी ऊपर जानो ।। ठाबन सहस पंच अधिकाने, द्वादश अंग सर्व पद माने । कोडि इकावन आठ हि लाख, सहस चुरासी बहसौ भाख ॥ साठे इकीस श्लोक बताये, एक एक पद के ये गाये ||
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com