Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

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Page 78
________________ (६५) अंतराय है कर्म प्रबल जो दान लाभ का घातक है । वीर्य भोग उपभोग सभी में, विघ्न अनेक प्रदायक है ।। इसी कर्म के नाश हेतु श्री, वीर जिनेन्द्र और गणनाथ । सदा सहायक हों हम सब के, विनती करें जोडकर हाथ ॥ (यहांपर पुष्पक्षपणकर हाथ जोड़े) इसके बाद हरएक बही में केशरसे सांथिया मांडकर एक एक कोरा पान रखे और निम्न प्रकार लिखें। लाभ शुभ श्री ऋषभदेवाय नमः, श्री महावीराय नमः, श्री गौतमगणधराय नमः, श्री केवलज्ञानलक्ष्म्यै नमः, श्री जिनसरस्वत्यै नमः। श्री शुभ मिती कार्तिक ...... .."वीर नि. संवत २४ .. विक्रम सं. २०० . दिनाँक । ।१९...ई... वार को श्री......................................की................... दुकाम की....................."वही का शुभ मुहूर्त किया। यह हो जाने के बाद विधि करानेवाले, दूकान के मुख्य सज्जन को वही हाथ में देवे और पुष्प चेपे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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