Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
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(५६)
हरि चन्दन अगर कपूर, चूर सुगंध करा। तुम पद तर खेवत भूरि, पाठों कर्म जरा ॥श्री।।. ओ हाँ श्री महावीर जिनेन्द्राय धूपं निवपामीति स्वाहा । रितुफल कल वर्जित लाय, कंचन थार भरा। शिवफलहित हे जिनराज, तुम ढिग भेट धरा ॥श्री.॥ ओं ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय फलं निववपामीति स्वाहा । जल फल सु सजि हिम थार, तनमन मोद धरों। गुणगाऊ भवदधितार, पूजत पाप हरों ॥ श्री। ओं ही श्री महावीर जिनेन्द्राय अध्यम् निर्भपामीति स्वाहा ।
पंच कल्याणक ।
राग टप्पा चाल में। मोहि राखो हो सरना, श्रीवर्धमान जिनरायजी, मोहि
राखो हो सरणा। गरभ माढसित छह लियो थिति, त्रिशला उर अध हरना। सुर सुरपति तित सेव करयो नित, मैं पूजा भव तरना ॥ मोहि राखो हो सरना, श्रीवर्द्धमान जिनरायजी मोहिराखो. ___ओं ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय आषाढ़ शुक्लषष्या गर्म मंगल मण्डिताय अय॑म् निर्वपामि स्वाहा। . जनम चैतसित तेरस के दिन कुंडलपुर कनवरना । सुरगिर मुरगुरु पूज रचायों, मैं पूजों मच हाना सहि.॥
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