Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
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(५५) प्रभुवेग हरो भवपीर, यात धार करों ॥ श्रीवोर महा अतिवीर, सन्मति दायक हो। जय वर्तमान गुणधीर, सन्मति नायक हो ॥१॥ ओं ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय जलं निर्वपामीति स्वाहा । मलयागिर चन्दन सार, केसर रंग भरी । प्रभु भव आताप निवार, पूजत हिय हुलसा । श्री वीर महाप्रतिवीर, सन्मति नायक हो । जय वर्तमान गुणधीर, सन्मति दायक हो ॥२॥ ओं ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा । तंदुलसित शशिसम, शुद्ध लीनों थार भरी । तमु पुंज धरो अविरुद्ध, पावो शिव नगरी ॥श्री.॥ ओं ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा । सुरतरु के सुमन समेत, सुमन सुमन प्यारे । सो मन्मथ भंजन हेत, पूजों पद थारे ॥श्री.॥ ओं ही श्री महावीर जिनेन्द्राय पुष्पम् निर्वपामीति म्वाहा । रस रजत सजत सब, मज्जत थारभरी। पद जज्जत रज्जत अद्य, भज्जत भूख भरी ॥श्री.॥ ओं ही श्री महावीर जिनेन्द्राय वेद्य निर्वपामीति स्वाहा । तम खडित मंडित नेह, दीपक जोवत हों। तुम पदतर हे सुख गेह, भ्रमतम खोवत हो ॥श्री.॥ ओही श्री महावीर जिनेन्द्राय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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