Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

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Page 34
________________ (२१) .. . . . . संपूजये विविधभक्ति भरावनम्रः । शांतिप्रदं भुवनमुख्यपदार्थ साथैः ॥१८॥ ओं हों श्री अहंदादिसप्तदश मंत्रेभ्यः समुदायार्यम् । इसके पश्चात् ९ वार एमोकार मन्त्र का जाप्य करें। जयमाला। विघ्नग्रणाशनविधी सुरमय॑नाथा । भग्रेसर जिन वदन्ति भवंतमिष्टम् ।। भानाधनंतयुगवर्तिनमत्र कार्यगार्हस्थ्यधर्मविहितेऽहमपि स्मरामि ॥ विनायकः सकलर्मिजिनेषु धर्मम्वेधा नयत्यविरतं दृढसप्तमंग्या । यदध्यानतो नयनमावमुज्झनेनबुद्धः स्वयं सकलनायक इत्यवाप्तेः ॥ गणानां मुनीनामधीशवतस्ते. गणेशाख्यया. ये भवन्त स्तुवन्ति । सदा विघ्नसंदोहशांतिजेनानां, करे .संलुरत्यायतश्रेयसानाम् । अतस्त्वमेवासि विनायको मे. दृष्टेष्टयोगानवरुद-भावः । त्वनाममात्रण पराभवन्तिविघ्नारयस्तीह किमत्र चित्रम् ॥ जय जय जिनराज त्वद्गुणान्को व्यक्ति, यदि मुरगुरुरिन्द्रः, कोटि वर्ष प्रमाणं । वदितुमभिलषेद्वा पारमाप्नोति नो चेक. कति य इह मनुष्याः स्वल्पबुद्ध्या संमेताः ॥७॥ ओह श्री मंगलोत्तमशरणभूतेभ्यः पंचपरमेष्ठिभ्यो जमानायम् ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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