Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

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Page 43
________________ (३०) नमः ॥२॥ ओं परमजाताय नमः ॥३ ।। ओं परमाईजाताय. नमः ॥४ाओं परमरूपाय नमः ॥५॥ ओं परपतेजसे नमः ॥६॥ओं परममुणाय नमः ।। ७ ॥ ओं परमस्थानाय नमः ॥८॥ परमयोगिने नमः ॥ ९॥ ओं परमभाग्याय नमः ॥१०॥ ओं परमद्धये नमः ॥११॥ ओं परमप्रसादाय नमः ॥१२॥ ओं परमकांक्षिताय नमः ॥१३॥ ओं परमविजयाय नमः ॥१४॥ ओं परमविज्ञानाय नमः ॥१५॥ ओं परमदर्शनाय नमः ॥१६॥ओं परमवीर्याय नमः ॥१७॥ ओं परमसुखायनमः ॥१८॥ ओं परमसर्वज्ञाय नमः ॥१९॥ ऑ अर्हते नमः ॥२०॥ ओं परमेष्ठिने नमः ॥२१॥ ओं परमनेत्रे नमो नमः ॥२२॥ ओं सम्यग्दृष्टे ! सम्यग्दृष्टे ! त्रैलोक्यविजय ! त्रैलोक्यविजय ! धर्ममूर्ते ! धर्ममूर्ते ! धर्मनेमे ! धर्मनेमे ! स्वाहा ॥२३॥ सेवाफलं षट् परमस्थानं भवतु । अपमृत्युविनाशनं भवतु । आहूति मंत्र। ओं हां अहद्भयः नमः स्वाहा ॥१॥ ओंगी विलम्यः स्वाहा ॥२॥ओं हं श्राचार्येभ्यः स्वाहा ॥३॥ओं उपाध्यायेभ्यः स्वाहा ॥ ४॥ओं हः सर्वसाधुभ्यः स्वाहा ॥५॥ ओं ही जिनधर्मेभ्यः स्वाहा ॥ ६ ॥ ओं ही जिनागमेभ्यः स्वा ॥७॥ आ ही विमपैत्योपः महा.आ ही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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