Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
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(२९) ताय स्वाहा ॥४॥ ओं नेमिनाथाय स्वाहा॥५॥ओं सौषमाय स्वाहा ॥६॥ ओंकल्पाधिपतये स्वाहा ॥७॥ ओं अनुचराय स्वाहा ॥ ८॥ ओं परम्परेन्द्राय स्वाहा ॥९॥ ओं अहमिन्द्राय स्वाहा ॥१०॥ ओं परमाईजाताय स्वाहा ॥११॥
ओं अनुपमाय स्वाहा ॥१२॥ ओं सम्यग्दृष्टे ! सम्यग्दृष्टे ! कल्पपपते ! कल्पपपते ! दिष्यमूर्ते ! दिव्यमूर्ते वज्रनामन ! वज्रनामन् ! स्वाहा ॥१३॥ सेवाफलं षट् परमस्थानं भवतु । अपमृत्युविनाशनं भवतु ।
परमराजादि मन्त्र। ओं सत्यजाताय स्वाहा ॥ १ ॥ओं मर्हज्जातायस्वाहा ॥२॥ ऑ अनुपमेन्द्राय स्वाहा ॥ ३॥ आ विजयार्चिर्जाताय स्वाहा ॥४॥ओं नेमिनाथाय स्वाहा ॥५॥ ओं परमजाताय स्वाहा ॥ ६ ॥ ऑ,परमाईजाताय स्वाहा॥७॥ ओं अनुपमाय स्वाहा ॥८॥ आ सम्यग्दृष्टे ! सम्यग्दृष्टे ! उग्रतेजः ! उग्रतेजः । दिशांजन ! दिशंजन ! नेमिविजय ! नेमिविजय ! स्वाहा ॥९॥ सेवाफलं षट्परमस्थानं भवतु । अपमृत्युविनाशनं भवतु ।
परमेष्ठि मन्त्र । ओं सत्यजाताय नमः स्वाहा ॥ ॥ ओ महज्बाताय
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