Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
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(५१) उन्हें यह वास्तविक रहस्य मालूम कर लेना चाहिये कि जो धन का लाभ होता है वह अन्तराय कर्म का क्षयोपशम से होता है । अन्तराय कर्म का क्षयोपशम शुभ कियाओं से हो सकता है । मिथ्यात्व वर्द्धिनी क्रियाओं से नहीं होता है।
दीपमालिका के रोज प्रातःकाल उठकर सामायिक, स्तुति पाठ कर शौच स्नानादि से निवृत हो श्री जिनमंदिर में पूजन करना चाहिये और निर्वाण पूजा, निर्वाणकांड, महावीराष्टक, बोलकर निर्माण लाडू चढाना चाहिये ।
नई बहियों के मुहूर्त की विधि । . सायंकाल को उत्तम गोधूलिक लग्न में अपनी दुकान के पवित्र स्थान में नई बहियोंका नवीन संवतसे शुभमुहूर्त करें, उसके लिये ऊंची चौकी पर थाली में केशर से 'ओं श्री महावीराय नमः, लिखकर दूसरी चौकी पर शास्त्रजी विराजमान करें और एक थाली में साथियां माडकर सामग्री चढ़ाने के लिये रखें । अष्टद्रव्य जल, चन्दन,अक्षत,पुष्प,नैवेद्य, दीप,धूप, फल, अर्घ्य बनावें । बहियां,दवात,कलम आदि पास में रखले दाहिनी
ओर घी का दीपक, बांई ओर धूपदान रहना चाहिये।दीपक में घृत इस प्रमाण से साला जाय कि रात्रि भर वह दीपक जलता रहे। इस प्रकार पूजा प्रारम्भ करें। पूजा करने के लिये कुटुम्बियों को पूर्व या उत्तर में बैठाना चाहिए। पूजा गृहस्था चार्य से या स्वयं करना चाहिए। सबसे प्रथम पूजन में बैठे हुए सर्व सज्जनों को तिखक लगाना चाहिये, उस समय यह श्लोक पढ़ें।
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