Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

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Page 65
________________ (५२) श्लोक । मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतमो गणी । मंगलं कुन्दकुन्दाद्यो, जैनधास्तु मंगलम् ॥ पश्चात् पूजा प्रारम्भ करें। अहंतो भगवन्त इन्द्रमहिताः सिद्धाश्च सिद्धीश्वराः । प्राचाया जिन शासनोन्नतिकराः पूज्या उपाध्यायकाः ।। श्रीसिद्धांतसुपाठका मुनिवरा रत्नत्रयाराधारकाः । पंचतेपरमेष्नि: प्रतिदिन कुर्वन्तु नः मंगलम् ॥२॥ ओं जय जय जय, नमोऽस्त नमोऽस्त नमोऽस्त । णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं णमो णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं । चत्तारि मंगल अरहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहू मंगलं, केवलि पएणतोधम्मो मंगलं । चत्तारि लोगुसमा, अम्हंतलोगुत्तमा, सिद्धलोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपएणतो धम्मोलोगुत्तमा, चत्तारिसरणं पध्वजामि, अरहंतसरणं पव्वजामि, सिद्धसरण पव्वजामि, साहूसरणं पन्वजामि, केवलिपएणतो धम्मोसरण पब्वजामि । (ओं अनादिमूलमत्रभ्यो नमः ) । (यह पढ़कर पुष्पांजलि क्षेपण करें) श्री देव शास्त्र गुरुपूजा का अर्घ । जल परम उज्जल गंध अक्षत पुष्प चरु दीपक धरूं । वर धूप निरमल फल विविध बहु जनम के पातक हरू । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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