Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
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(५०) भव्य जीवों को दिव्य ध्वनिद्वारा आत्मा के उद्धार का मार्ग बताया। ७२ वर्ष की उम्र के अन्त में श्री शुभ मिती कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी के अन्त समय (अमावस्या के अत्यन्त प्रातःकाल ) स्वाति नक्षत्र में मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त किया।
उसी समय भगवान के प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई और देवों ने रत्नमयी दीपकों द्वारा प्रकाश कर उत्सव मनाया तथा हर्ष के सूचक मोदक (नैवेद्य) आदि से पूजा की तब से इन दोनों महान् अात्माओं की स्मृतिस्वरूप यह निर्वाणोत्सव समस्त भारतवर्ष में .मनाया जाता है।
परन्तु वर्तमान में इस उत्सव को भिन्न भिन्न तरीकों से लोग मानते हैं । और उसमें गणेश (जिसका तात्पर्य प्रणधर गौतम स्वामी से था) की पूजा करते हैं, तथा अन्य देव की कल्पना करते हैं । इसी प्रकार लक्ष्मी ( जिसका मतलब मोक्ष लक्ष्मी केवलशान लक्ष्मी से था) को धन संपत्ति की अधिपठात्री देवी समझकर रुपयों की पूजा करते हैं। तथा इसी पवित्र दिन में जूना आदि अनीतिमूलक कार्य करते हैं। ये सब मिथ्यात्व को पोषण करने वाली अधार्मिक प्रवृत्तियां हैं । इन सब कुरीतियों को दूर कर जैनशास्त्रानुसार खम्यग्दर्शन को पुष्ट करने वाली क्रियाओं द्वारा विशेष उत्साह पूर्वक दीपावला मनाना चाहिये, जिससे धार्मिक भाव सदा जागृत रहें। इस उपर्युक्त उद्देश्य को बहुतसे सज्जन जानकर भी लक्ष्मी (रुपयों पैसे) की पूजा करते हैं,यह उनकी नितांत भूल है । हम यह जानते हैं कि वे व्यापारी है और व्यापार विषयक लाभ की आकांक्षा से वे ऐसा करते होंगे। किन्तु
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