Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
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(४८) के उद्देश्य से आपने अंगीकार किया है । आप दोनों एक दूसरे के प्रति तो जवाबदार तो हैं ही,पर स्वधर्म,स्वसमाज की और स्वदेश की सेवा का दायित्व मी पाप पर आपड़ा है। यह गृहस्थका भार बहुत बड़ा और अनेक संकटोंसे युक्त है। गृहस्थ अवस्था में आनेवाली अनेक आपत्तियों से घबराकर गृह-विरत होजाने के बहुत उदाहरण मिलेगें। परंतु हमें प्राशा है आप जीवन की हरेक परीक्षा उत्तीर्ण होंगे। समस्त कठिनाइयों को कर्मयोगी बनकर सहन करते हुए उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर दृढ रहना आपका कर्तव्य होगा।
पुराणों में उल्लिखित जयकुमार-सुलोचना, राम-सीता या अन्य किसी के दाम्पत्य जीवन के आदर्श को आप अपने सामने रखें हमारी यह शुभ कामना है कि उन्हीं के समान भावी पीढी आपका भी उदाहरण अपने समक्ष रखे।
आप दोनों यौवन के वेग में न बहकर अपने कुल के सम्मान का झ्याल रखते हुए गौरवमय यशस्वी जीवन व्यतीत - करें। आपका व्यवहार न्याय्य एवं नैतिकतापूर्ण हो।
पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी को सहयोगिनी मानकर उसे ऊचा उठाने के साधन सदा. जुटाता रहे और पत्नी पति के हर कार्य को सफल बनाने में पूरा योग देती रहे। दोनों भौतिकता में न लुमाकर आध्यात्मिकता के रहस्य को समझे-इसी में उन्हें यथार्थ सुख और शांति प्राप्त होगी। इसके लिए प्रीतिदिन सामायिक और स्वाध्याय आवश्यक है हमारी हार्दिक मंगल कामना है कि मापकी यह जोडी दीघ काल तक बनी रहे।
संपादक
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