Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

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Page 59
________________ मरुदेवी आनन्द थयो, हर्षे परिजन पच्छ ॥२६॥ यह विवाह मंगल महा, पढत बढत आनन्द । सवको सुख संपति करो, नाभिराय कुलचन्द ॥३०॥ वंश वेल बाढे सुखद, बरै धर्म मर्याद । वर कन्या जीवे सुथिर, ऋषभदेव परसाद ॥३१॥ उक्त शाखाचार कन्या प्रदान की विधि के समय अग्रवाल आदि जातियों में बोला जाता है । इसके साथ अग्रवालों में दोनों पक्ष की ओरसे सात सात पीढी के नाम बताकर वर कन्या की मंगल-कामना की जाती है। विशेष ज्ञातव्य । (१) विवाह के दिन कन्या के रजस्वला होजाने पर कन्या से पांचवें दिन पूजन व हक्न आदि विवाह की विधि कराना चाहिए। (२) नवदेव पूजन में बत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय सर्व साधु, जिनधर्म, जिनागम, जिनचैत्य, और जिनालय ये ६ देवता हैं। (३) गुरु पूजा में ऋद्धियों की स्थापना के लिए “ों बुद्धि चारण विक्रियोषधतपोषलारसाक्षीणमहानसचतुःषष्ठि ऋद्धिभ्यो नमः" यह मन्त्र कागज पर केसर से लिखकर नीचे की करनी पर रख देना चाहिए। (४) विवाह प्रारमपरमा पश्चात् बर और कन्या को परस्पर मुहासोकर परवा शालानुसार और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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