Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ (३६) ओम् बलफलजंघातंतुपुष्पवेषिपत्राग्निशिखाकाशचारणभक्तिप्रसादात्सर्वशतिभवतु । . ओम् अहाररसवदक्षीणमहानसालय भक्तिप्रसादात्सर्वशांतिर्भवतु । ओम् उग्रदीप्ततप्तमहाघोरानुमतपोऋद्धिक्तिप्रसादात्सर्वशांतिमवतु । ओम् मनोवाक्कायवलिभक्तिप्रसादात्सर्वशांतिर्भवतु । ओम् क्रियाविक्रियाधारिभक्तिप्रसादात्सर्वशांतिभवतु । ओम् मतितावधिमनः पर्ययकेवलज्ञानि भक्तिप्रसादासर्वशांतिर्भवतु । ओम् अंगांगवाह्यज्ञानदिवाकर कुन्दकुन्दाबनेकदिगम्बरदेवभक्तिप्रसादात्सर्वशांतिर्भवतु । शांतिधारा इह वान्य नगरग्रामदेवताभनुजाः सर्वे गुरुभक्काः जिरधर्मपरायणा भवन्तु । .. . दानतपोवीनुष्तस्तं विलसेवाख । . . मातृपितधातपुत्रपात्रकसहलसबनसम्बंधिवन्धुसहितस्य अमुकस्य ते वन्य पावलवसतियशः प्रमोदोत्सवाः प्रवर्द्धन्ताम् । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106