Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ (३८) शान्तेति चतुर्विशतिभूतपरमदेवभक्तिप्रसादात्सर्वषांशांति मवतु । ओम् सम्प्रतिकालश्रेयस्करस्ववितरणजन्माभिषेकपरिनिष्क्रमण केवलज्ञाननिर्वाणकन्याणकविभूति-विभूपित महाभ्युदय श्रीवृषभाजितसंभवाभिनन्दनमुमतिपदमप्रभसुपार्श्वचन्द्रप्रभपुष्पदंतशीतलश्रेयोवासुपूज्यविमलानन्तधर्मशांति कुन्थ्वरमल्लि-मुनिसुव्रतनमिनेमिपाश्ववर्द्धमानेतिचतुर्विशतिवर्तमानपरमदेव भक्तिप्रसादात्सर्वशांतिर्भवतु । ' ओमभविष्यत्कालाभ्युदयप्रभवमहापद्मसूरदेवसुप्रभस्वयं प्रभसर्वायुधजयदेवोदयदेवप्रभादेवोदकदेवप्रश्नकीर्तिपूर्णबुद्धनिष्कषायविमलप्रभवहलनिमलचित्रगुप्तसमाधिगुप्तस्वयंभू- . कंदर्पजयनाथविमलनाथदिव्यवादानन्तवीर्येतिचतुर्विशतिभविष्यत्परमदेवभक्तिप्रसादात्सर्वशांतिभवतु । ओत्रिकाल वर्तिपरमधर्माभ्युदयसीमंधरयुग्मंधरवाहु-- सुबाहुसंजातकस्वयंप्रभऋषभेश्वरानन्तवीर्य विशालप्रमवज्रधर महाभद्रजयदेवाजितवीर्येतिपंचविदेहक्षेत्रविरहमाणविंशतिपरमदेवभक्तिप्रसादात्सर्वशांतिर्मवतु ओम् वृषभसेनादिगणवरदेव भक्तिप्रसादात्सर्वशांति .ओम् कोष्ठबीजपादानुसारि दिमित्रोवप्रज्ञाश्रमण भक्तिप्रसादात्सर्वशांतिभवतु ।' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106