Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
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(३४) यन्त्र सहित करनी और हवन की प्रज्वलित अग्नि युक्त स्थं. डिल के चारों ओर छः फेरे दिलवावें । इस समय स्त्रियां फेरों के मंगल गीत गावे । वर और कन्या के कपड़ों को संग लते हुए फेरे दिलाना चाहिए । एक दो समझदार स्त्री और पुरुष दोनों को संभालते रहे। छ: फेरों के बाद कन्या अपने पूर्व स्थान पर पहले के समान बैठजावें । गृहस्थाचार्य निम्नप्रकार सात सात बचनों (प्रतिक्षाओं) को कम से पहले वरसे और फिर कन्या से कहलवावे साथ ही स्वयं उनको सरल भाषा में समझाता जाय । वर की ओर से कन्या के प्रति ७ वचन ।
(१) मेरे कुटुम्वी लोगों का यथायोग्य विनय सत्कार करना होगा।
(२) मेरी आज्ञा का लोप नहीं करना होगा ताकि घर में अनुशासन बना रहे।
(३) कठोर बचन नहीं बोलना होगा। क्योंकि इससे चित्त को क्षोभ होकर पारस्परिक द्वेष होजाने की संभावना रहती है।
(४) सत्पात्रों के घर पर मानेपर उन्हें आहार आदि प्रदान करने में कलुषित मन नहीं करना होगा।
(५) मनुष्यों की मी प्रादि में जहां धक्का मादि लगने की संभावना हो वहां विना खास कारण के भो नहीं जाना होगा।
(६) दुराचारी और नशा करने वाले लोगों के घर पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com