Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

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Page 41
________________ (२८) स्वाहा ।.४॥ ओं अनादिश्रोत्रियाय स्वाहा ॥५॥ ओं स्नातकाय स्वाहा ॥६॥श्रावकाय स्वाहा ॥७॥ ओं देवब्राह्मणाय स्वाहा ||८|| ओं सुब्राह्मणाय स्वाहा || ओं अनुपमाय स्वाहा ॥१०॥ ओं सम्यग्दृष्टे ! सम्यग्दृष्टे ! निधिपते निधिपते ! वैश्रवण ! वैश्रवण ! स्वाहा ॥११॥ सेवाफलं षट् परमस्थानं भवतु। अपमृत्युविनाशनं भवतु । ऋषि मंत्र। ओं सत्यजाताय नमः स्वाहा ॥१ ॥ ओं अर्हज्जाताय नमः ॥२॥ ओं निग्रन्थाय नमः ॥३॥ ओं वीतरागाय नमः ओं महावताय नमः ॥४॥ओं त्रिगुप्तये नमः ॥६॥ओं महायोगाय नमः ॥७॥ आ विविधयोगाय नमः ॥८॥ ओं विवधर्द्धये नमः ॥९॥ ओ अंगधराय नमः ॥१०॥ओं गणथराय नमः ॥१२॥ ओं परमर्षिभ्यो नमः ॥१३॥ ओं अनुपमजाताय नमः ॥ १४ ॥ ओं सम्यग्दृष्टे ? सम्यग्दृष्टे ? भूपते ! भूपते ? नगरपते ? नगरपते ! कालश्रमण! कालश्रमण! स्वाहा ॥१५॥ सेवाफलं षट् परमस्थानं भवतु । अपमृत्यु विनाशनं भवतु । सुरेन्द्र मंत्र। ओं सत्यजाताय नमः स्वाहा ॥१॥ओं महंग्याताय नमः ॥२॥ ओं दिव्यजाताय स्वाहा ॥३॥ ओं दिन्यर्जाि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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