Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

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Page 44
________________ (३१) सम्यग्दर्शनाय स्वाहा ॥Ens ह्रौं सम्यग्ज्ञानाय स्वाहा ॥१०॥ ओं ह्रीं सम्यक्चारित्राय स्वाहा ॥११॥ शांति मन्त्र । ओं ह्रीं अहं असि आ उ सा नमः सर्व शांति कुरु कुरु स्वाहा। इस मन्त्र की १०८ बार या कमसे कम २७ बार माहूति दें। - इसके पश्चात् निम्न प्रकार सप्तपदी पूजा करावे । सप्तपदी पूजा । सज्जातिगार्हस्थ्य-परित्रजवं, सोरेन्द्रसाम्राज्य-जिनेश्वरत्वम् । निर्वाणकं चेति पदानि सप्त, भक्त्या यजेऽहं जिनषादपदनम् ।। _____ओं ह्रीं श्री सप्तपरयस्थानेभ्यः पुष्पांजलि सिपामि। विमलशीतलसज्जलधारया, सविधवन्धुरशीकरसारया । परमसप्तसुस्थानस्वरूपकं परिभजामि सदाष्टविधार्चनैः ॥१॥ ___ओं ही श्री सप्तपुरमस्थानेभ्यो जलम् । मसृणंकुकुमचन्दनसद्वैः, सुरभिवागतषट्मदसौः परम.॥ _____ओं ही श्री सप्तपरमस्थानेभ्यः चन्द्रनम् IRR .:. विजुलनिर्मलतंदुलसंचयः,कृतभुमौक्तिककपकनिस्वयःवरम.॥ ___ओं ह्रीं श्री सप्तपरमस्थानेभ्योऽक्षतान् ॥३॥ कुसुमंचपक-पंकजकुदकैः,सहजजाति-सुगा विमोद मरम॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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