Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
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(२७) ओं परमसिद्धभ्यो नमोनमः स्वाहा ॥३०॥ ओं अनादि पर. म्परासिद्धभ्यो नमोनमः स्वाहा ।। ३१ ।। ओं अनाद्यनुपम सिद्धेभ्यो नमोनमः स्वाहा ॥३२॥ ओं सम्यग्दृष्टे ! सम्य
भनाई निर्वाण ग्दृष्टे ! आसनमव्य ! आसन्नमव्य ! निर्वाणपूजार्ह पूजा ! अग्नीन्द्र ? अग्नीन्द्र ! स्वाहा ॥३३॥
इस प्रकार आहूति देकर गृहस्थाचार्य नीचे लिखा काम्यमंत्र पढ़कर एक आहूति दे और वर कन्या पर पुष्प क्षेपे। इसीप्रकार आगे भो करे। मेषाफलं षट्परमस्थानं भवतु । अपमृत्युविनाशन भवतु ।
जाति मन्त्र । ओं सत्यजन्मनः शरणं प्रपद्ये नमः ॥१॥ओं अहंजन्मनः शरणं प्रपद्ये नमः ॥२॥ ओं अहेन्मातुः शरण प्रपद्येनमः ॥३ ।। ओं अर्हत्सुतस्य शरणं प्रपद्ये नमः ॥ ४ ॥ ऑअनादिगमनस्य शरणं प्रपद्ये नमः ॥ ५॥ओं अनुपमजन्मनः शरणं प्रपद्ये नम ॥६॥ औं रत्नत्रयस्य शरणं प्रपद्ये नमः ।। ७ ।। ओं सम्यग्दृष्टे ! सम्यग्दृष्ट ! ज्ञानमूत ! ज्ञानमूत सरस्वति ! सरस्वति ! स्वाहा ॥८॥ सेवाफलें षट् परमस्थानं भवतु । अपमृत्युविनाशनं भवतु ।
निस्तारक मंत्र। ओं सत्यजाताय नमः स्वाहा ।। १ ।। औं अहज्जाताय नमः स्वाहा ॥२।। ओं षट्कर्मणे स्वाहा || ओं ग्रामपतये
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