Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ (१७) शाल्यक्षतरक्षत-मूर्तिमाद्भ-रजादिवासेन सुगन्धवाद्भिः॥अहं.। ओं ह्रीं श्री मंगलोत्तमशरणभूतेभ्यः पंचपरमेष्ठिभ्यः अक्षतान् ॥३॥ कदंबजात्यादिभवः सुरद्रुमै,जातैमनोजातविपाशदः ॥अहः।। ओं ह्रीं श्री मंगलोत्तमशरणभूतेभ्य; पंचपरमेष्ठिभ्वः पुष्पम् ४॥ पीयूश्चपिंडैश्च शशांककांति--स्पर्द्धद्भिरिष्टै यन-प्रियैश्च ॥अहं. ओं हां श्री मंगलोत्तमशरणभूतेभ्यः पंचपरमेष्ठिभ्यः नैवेद्यम् ॥५॥ ध्वस्तांधकारप्रसैरः सुदीपै,घृतोद्भवैरत्नविनिर्मित र्वा ॥ई.।। ओं ह्रीं श्री मंगलोत्तमशरणभूतेभ्यः पंचपरमेष्ठिभ्यः दीपं ॥६॥ स्वकीय धूमेन नभोवऽकाश व्यापद्भिद्यैश्च सुगंधधूपैः॥अह।। ओं ह्रीं श्री मंगलोत्तमशरणभूतेभ्यः पंचपरमेष्ठिभ्यः धूपं ॥७॥ नारंग पूगादिफलंग्नध्य, हृन्मानसादिप्रियतपकैश्च ॥अर्ह.। ओं ह्रीं श्री मंगलोत्तमशरणभूतेभ्य; पंचपरमेष्ठिभ्य; फलं ॥८॥ अमश्चन्दन नन्दनाचत तरूद्भुत निवेधैर्वरै । दीपैखूप फलोत्तमैः समुदितै रेमिः सुपात्रस्थितैः ।। अर्हत्सिद्धसुखरिपाठकमुनीन्, लोकोत्तमान्मगलान् । प्रत्यूहौषनिवृत्तये शुभकृतः मेवे शरण्यानहम् ।। ओं ह्रीं श्री मंगलोत्तमशरणभूतेभ्यः पंचपरमेष्ठिभ्योऽयन् ॥३॥ कल्याणपंचक कृतोदयमाप्तभीशमहन्तमच्युत चतुष्टयभामुरांगम् । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106