Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

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Page 21
________________ देना चाहिए । तोरन में भी बरात का स्वागत होकर तिलक आरती हो जाय इसके पश्चात ही पाणिग्रहण संस्कार हो जाना चाहिए । तोरण का अभिप्राय है कन्या के द्वार पर जाना । उत्तर प्रदेश में पहले से और मध्य भारत में अभी यह होने भी लगा हैं । अग्रवाल जाति में बरात के आनेपर बरात में यन्त्र पूजा होती है इसके बाद बरात कन्याके यहाँ जाती है । फेरे के अाधा घंटे पहले गृहस्थाचार्य विवाह की सामग्री देखकर उसे वेदी के स्थान पर यथा स्थान जमादे। पुजारी से पूजन द्रव्य धुलवाकर मंगा लिया जाय । स्थडिल पर कुंकुम से साथिया बना ले और चारों ओर दीपक रख दे । पूर्व या उत्तर मुम्ब बनी हुई तीन कटनी में ऊपर यन्त्रजी, बीच में शास्त्र और नीचे गुरुपूजा के निमित्त चौसठ ऋद्धि कागज पर मारकर रखे तथा वहीं अष्ट मंगल द्रव्य सजावे। वर कन्या के बैठने के लिए यंत्र के दक्षिण ओर नई गादी विछवा दे, जिस पर वे उत्तर मुख बैठ सकें। विवाह का मुहूर्त विवाह में अग्रवालों में कन्या प्रदान और पाणिपीडन (हथलेवा) का मुहूर्त मुख्य माना जाता है। ब्राह्मण ज्योतिषी इन्हीं मुहतों को निकाला करते है। परन्तु जैन विधि के अनुसार खण्डेलवालों में जब कि वर कन्या विवाह बेदी में आते हैं तब मंगलाष्टक बोलकर परस्पर वरमाला पहनाई जाती है । उसी का मुहूर्त माना जाता है । अग्रवालों में वर के मण्डप में भाते ही इस समय तीन फेरे करा लिया जाते हैं पीछे विवाह विधि में शेष चार फेरे होते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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