Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala
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कन्या को स्नान द्वारा नियां वर के स्थान (जनिवासा) पर वर को स्नान कराने पावें, और परदिर पास में हो तो दर्शन कर ठीक मुहूर्त से १५ मिनिट पहले बंडप में प्राजाय दरवाजे पर कन्या की माता चांवल का छोटासा चौक पूर कर पास रखे और उसपर वर के पैर बल से घोवे फिर आरती करे । कन्या का मामा वर को तिलक कर एक रुपया व श्रीफल भेंटकर साथ में वेदीपर लाकर गादी पर पूर्व मुख खडा करदे । पीछे कन्या को मी गादीपर लाकर वर के सामने पश्चिम मुख खडा करदे । बीच में एक डुपट्टा (अन्तपट) लगादे जिसे दो व्यक्ति पकड़ रखें । घर और कन्या को एक एक पुष्पहार देदे । वर और कन्या के मुंह में इस समय पान सुपारी न हो और न कन्या चप्पले पहिने वेदी में आवे । गृहस्थाचार्य आगे लिखा मंगलाष्टक पढे और ठीकमुहूर्त पर कन्या वर को और वर कन्या को पुष्पमाता पहना दे। पीछे दोनों पूर्व मुख होकर गादी पर बैठ जावे कन्या कर के दक्षिण ओर रहे। गृहस्थाचार्य वर से मंगल कलश स्थापन करावे । कलश में शुद्ध जल, सुपारी, हल्दी गांठ, एक रुप्या, पवन पुडी (यह सराफा बाजार में एक १) करीब में भाती है) और पुष्पहालकर श्रीफल व लाखकोन से तक सडलेले बांधे और पान रखाकर काम की माता पहनावे।
मंगल कलश स्थापन मंत्र मोमय ममवतो महापुरुषस्य श्रीमददि बरसो मतेरिम विधीयमान विवाह कर्मणि भाक वीर निर्भस संबव सरे अमुक सियो अमुक दिने शुभ लग्ने भूमि शुद्धयर्य
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