Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ (४) तथा ४ अंगुल ऊंचा शास्त्रानुसार स्थडिल बनजाता है। उन्हें केवल रख देने और ऊपर से मिट्टी बिछा देने से काम चल जाता है और कारीगर की आवश्यकता नहीं रहती। घाटू १ हाथ लम्बा होता है। हवन द्रव्यों को इमानदस्ते में कुटाकर मिला लेना चाहिए । विनायक यन्त्र का आकार । साहूलोगुत्तमा l कवलि पएणत्तो धम्मोलोगुत्तमा अरिहंत सिन जमा लोगुत्तमा केवलि पण्णत्तो धम्मोमंगलम् मापव्वज्जामिन अरिहंत सरण/सिन शिवज्जामि। बंगलममगलमा भि पव्वजामि सरण साहू सरणं HIsbe bemere LADysel क्रो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106