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[ उन्नीस ]
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४. शिवार्य दिगम्बर थे
४५८
५.
नाम के साथ 'यति' शब्द का प्रयोग यापनीय होने का लक्षण नहीं ४५८ ६. स्त्रीमुक्त्यादि-निषेध का अनुल्लेख यापनीयग्रन्थ का लक्षण नहीं ७. न शिवार्य यापनीय थे, न यतिवृषभ
८. 'गणी' शब्द यतिवृषभ का सूचक नहीं
९.
O
अन्तस्तत्त्व
द्वितीय प्रकरण - यापनीयपक्षधर हेतुओं की असत्यता एवं हेत्वाभासता
१. कसायपाहुडचूर्णि एवं यतिवृषभ यापनीय नहीं
२. दिगम्बरों में कसायपाहुडचूर्णि का लेखन
३. उत्तरभारतीय- सचेलाचेल-निर्ग्रन्थ-परम्परा कपोलकल्पित
५.
आगमविच्छेदक्रम न प्रक्षिप्त, न यापनीयकथित
उपसंहार — ति० प० के दिगम्बराचार्यकृत होने के प्रमाण सूत्ररूप में
प्रथम प्रकरण – सन्मतिसूत्रकार के दिगम्बर होने के प्रमाण
१. सन्मतिसूत्र जैनदर्शन - प्रभावक ग्रन्थ
२. सिद्धसेन नाम के अनेक ग्रन्थकार
३. कल्याणमन्दिरस्तोत्र - वर्णित पार्श्वनाथ - उपसर्ग श्वेताम्बरमत-विरुद्ध न्यायावतार एवं ३२ द्वात्रिंशिकाओं का परिचय
४.
सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन केवल 'सन्मतिसूत्र' के कर्त्ता O समान प्रतिभा का हेतु साधारणानैकान्तिक हेत्वाभास ५. १. सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन अभेदवाद ( एकोपयोगवाद) पुरस्कर्त्ता
५.२. प्रथम-द्वितीय-पंचम द्वात्रिंशिकाएँ युगपद्वादप्रतिपाद ५.३. निश्चयद्वात्रिंशिका एकोपयोगवाद-विरोधी, युगपद्वादी ५.४. निश्चयद्वात्रिंशिका मति - श्रुतभेद - अवधि - मन:पर्ययभेदविरोधी
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अष्टादश अध्याय
सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन : दिगम्बराचार्य
५.५. 'सन्मतिसूत्र' मतिज्ञान - श्रुतज्ञान - भेदसमर्थक ५.६. न्यायावतार मतिज्ञान - श्रुतज्ञानादि - भेदसमर्थक
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