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जैन कथा कोष ३
उस समय रात आधी से अधिक हो चुकी थी । इसलिए अगड़दत्त ने शेष रात्रि वहीं उद्यान में बने देवकुल के पास ही व्यतीत करने का निर्णय किया । लेकिन रात्रि की कालिमा को कम करने तथा शीत से बचने के लिए अग्नि की आवश्यकता होती है । इसलिए वह पत्नी श्यामदत्ता को वहीं बिठाकर श्मशान से अंगारे लेने चल दिया, जिससे रात्रि प्रकाश के सहारे व्यतीत की जा सके।
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जब अगड़दत्त श्मशान से अंगारे लेकर लौटा तो उसे देवकुल में प्रकाश दिखाई दिया। तब उसने पत्नी से पूछा - 'देवकुल में प्रकाश कैसा है?' पत्नी ने कह दिया कि 'आपके हाथ की अग्नि की परछाईं है।' अगड़दत्त ने उस पर विश्वास कर लिया। रात उन दोनों ने वहीं व्यतीत की और सुबह अपने घर लौट आये ।
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एक दिन अगड़दत्त के घर दो मुनि गोचरी हेतु आये । उसने उन्हें आहार प्रतिलाभत किया । इसके कुछ देर बाद दूसरे दो मुनि आये। उसने उन्हें भी आहारदान दिया। तत्पश्चात् तीसरे दिन दो मुनि आये, उन्हें भी उसने प्रासुक आहार बहराया। इसके बाद वह उद्यान पहुँचा, उनकी देशना सुनी और फिर पूछा- 'आप छहों मुनि समान रूप वाले हैं, आयु भी आपकी कम है, फिर आपने इतनी छोटी उम्र में वैराग्य क्यों ले लिया?'
उन मुनियों ने बताया—विंध्याचल के सन्निकट 'अमृतसुन्दरा' नाम की चोर पल्ली है। वहाँ 'अर्जुन' नाम का चोर सेनापति था । हम छहों अर्जुन के छोटे भाई हैं। एक बार एक युवक अपनी पत्नी के साथ रथ में बैठकर उधर से निकला। उसने अर्जुन चोर यानि हमारे भाई को मार गिराया। हम छहों उसका पता लगाते हुए उज्जयिनी आ गये। उस दिन उद्यान में उत्सव था । वह युवक भी अपनी पत्नी के साथ उत्सव में आया। लेकिन उसकी पत्नी को सर्प ने काट • लिया, वह मूर्च्छित हो गई। वह युवक अपनी पत्नी के मूर्च्छित शरीर के पास बैठक रोता रहा । इतने में दो विद्याधर आकाश मार्ग से उधर आ निकले। उन्होंने उसकी पत्नी को निर्विष कर दिया। वह रात्रि व्यतीत करने के लिए पत्नी को वहीं छोड़कर समशान से अंगारे लेने चला गया ।
हमें उसी युवक को तलाश थी। हम छहों भाई भी उद्यान में पहुँच चुके थे। हम पाँचों तो देवकुल में तथा इधर-उधर छिप गये थे और अपने छोटे भाई पर उसे मारने का उत्तरदायित्व डाल दिया था। उसने उस युवक की पत्नी को