Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 14
________________ ६८२ जैनहितैषी - यदि इस विषय में मेरा कुछ भ्रम हो तो उसको दूर करनेका यत्न करेंगे । मैं यहाँ यह निवेदन अवश्य कर देना चाहता हूँ कि किसी सम्प्रदायकी निन्दा प्रशंसासे इसका कोई खोज ही इस लेखका उद्देश्य है । सम्बन्ध नहीं है- सत्यकी ( २८-९-१९ ) जैनोंकी राजभक्ति और देशसेवा । ३ - जोधपुरके भण्डारी । जो लगभग तीन सौ घर हैं । धपुर के भण्डारी ओसवाल जातिके हैं । इनके यहाँ सदा मुत्सद्दीगरी अर्थात् नौकरी पेशा रहा है। मारवाड़ी समाजमें इनकी अच्छी प्रतिष्ठा है । वर्त्तमानमें जोधपुरमें इनके Jain Education International 1 ये लोग अपनी उत्पत्ति अजमेर के चौहान घरानेसे बताते हैं । इनके पितामह राव लक्ष्मणने ( लखमसी) अजमेरके घरानेसे पृथक् होकर नाडौलमें एक स्वतन्त्र राज्यकुल स्थापित किया था । इस कुलमें कितने ही राजा हुए। सबसे अन्तिम राजा अल्हणदेव था जिसने सन् १९६२ ईस्वीमें नाडौलके जैनमंदिर के सहायतार्थ बहुतसी सम्पत्ति अर्पण की थी । इसमें कोई सन्देह नहीं कि लाखा एक महापुरुष था । वीरता और देशभक्तिमें कोई उसका सानी न था । उसने अणहिलवाडासे कर और चित्तौरके राजासे खिराज किया था । अब भी जो कोई यात्री वहाँ जाता है, उसे वसूल For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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