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समालोचनाकी आलोचना ।
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विदेशी आमदनी और ख़र्चका उपर्युक्त मद्दोंमें हिसाब लगाना चाहिए । देशी और विदेशी आमदनी और खर्चका हिसाब लगाते समय इस बातपर भी ध्यान रखना चाहिए कि कोई रकम दो बार हिसाबमें न आजाय । आमदनी और खर्चके सिवाय कुछ हिसाब उस धनका भी लगाना चाहिए जो पहलेसे भारतवासियोंके घरोंमें ज़मीनके नीचे गढ़ा हुआ रक्खा है । यह देखना चाहिए कि इस गढ़ेहुए धनमें कमी हो रही है या ज़ियादती ?
सेठजी ! अब आपने देखा कि भारतवर्ष के धनका अंदाजा लगानेके लिए सिर्फ सोने-चाँदीका हिसाब लगानेसे कुछ काम नहीं चल सकता । हाँ, अभी एक बात और है । यदि हम थोड़ी देर के लिए यह मान भी लें कि भारतवर्ष के धनका अंदाजा केवल सोने-चांदी के हिसाब से ही लग सकता है, तो क्या आप यह समझते हैं कि यह सोना-चाँदी भारतवर्षमें लाभके रूपमें या मुफ्त चला आता है ? क्योंकि लाभके रूपमें या मुफ्त चले आनेसे ही धनकी वृद्धि हो सकती है । यदि हमको इसके बदलेमें उतने ही मूल्यका माल देना पड़ता है तो हमारे धनकी वृद्धि कैसे हुई ? हम तो वैसेके वैसे ही रहे । जितना हमारे पाससे गया उतना ही आया । यदि आप किसी मनुष्यको दो लाख रुपयेकी रुई दे दें और उसके बदले में वह मनुष्य आपको दो लाख रुपये का सोना-चांदी दे जाय, तो क्या आपके धनकी वृद्धि होगी ? वृद्धि तो उसी सूरतमें होगी जब आपको इस व्यापारसे कुछ लाभ हुआ हो, अथवा आपको कोई मुफ्त में सोना-चाँदी दे जाय । श्रीयुत दादाभाई नोरोजीने एक पुस्तक
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