________________
जैनहितैषी
महीनेमें ही इंग्लेडका सारा रुपया विदेशोंको चला जाय और इंग्लेडमें एक पेंस भी न रहे । क्या कारण है कि फ्रांस या इंग्लेंडका झटपट दीवाला नहीं निकल जाता ? इसका करण यह है कि इंग्लेड और फ्रांस विदेशोंकी कई तरहसे सेवा करते हैं। वे विदेशियोंके मालको अपने जहाजोंमें ले जाते हैं और विदेशियोंको व्यापार करनेके लिए अपने पाससे धन देते हैं । इसी लिए उनको विदेशियोंको प्रतिवर्ष इतना रुपया नहीं देना पड़ता।
अब आपने देखा कि एकपक्षको ही ग्रहण करनेसे कितने बड़े भ्रमकी संभावना हो सकती है। हम इस लेखके शुरूमें अनेक बातोंका जिक्र कर आये हैं। आपको भारतवर्षके धनके निर्णय करनेमें उन सब बातोंका विचार करना चाहिए । भारतवर्षके धनमें वृद्धि हो रही है या नहीं, यह विषय बड़ा ही टेढ़ा है। यदि आप इस उलझनको हल कर दें तो जैनसमाज ही नहीं किन्तु समस्त भारतवर्ष आपका बड़ा कृतज्ञ होगा।
-संशोधक।
पुस्तक-परिचय। ग त नौवें अंकमें जो पुस्तकपरिचय प्रकाशित हुआ
था, उसके ५४० वें पृष्ठके अन्तका कुछ अंश. छपनेसे रह गया था । वहाँ जैनप्रभात मासिकपत्रके परिचयमें इतना अंश और शामिल
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org