________________
विविध-प्रसङ्ग।
७५७
ओंकी तरह मालूम पड़ती है, लेकिन यह बात सच्ची है, उस समय हिंदुस्तान देश ऐसा ही सम्पत्तिवान् था। सत्रहवीं शताब्दिमें मुगल बादशाहोंने कुछ दीन दरिद्र यूरोपियन व्यापारियोंको. शान्तिसे व्यापार करनेकी आज्ञा दी । उन्होंने व्यापार करते करते पहिले भूमि मोल ली और फिर गांव
और नगरों पर कब्जा किया । इस प्रकार युरोपके समस्त राष्ट्र हिन्दुस्तानकी सम्पत्तिके लिए झगड़ने लगे । व्यापारी कंपनियोंको
राजाओंगे सनदें मिलीं और वे कंपनियां यहां आकर व्यापार करने लगीं । फ्रेंच और अंगरेजोंका आगमन हुआ, मिश्नरियोंने श्रीरामपुरमें कालेज स्थापित किया । इतने पर भी अठारहवीं शताब्दिके अर्द्ध भाग बीतनेतक हिंदुस्तान धनाढ्य था । बस, इसके बाद भारतकी लक्ष्मीकी अच्छी तरहसे लूट आरम्भ हो गई । अंगरेजोंकी सत्ताधीशतामें कम्पनी सरकारका राज्य चला और द्रव्यकी धारा इंगलैण्डकी ओर बह चली । उस समय खैरियत इतनी ही थी कि हर बीस वर्ष कम्पनीको अपनी सनद बदलवानी पड़ती थी और पार्लिमेंट सभामें इस बातकी जांच होती थी कि भारतकी तात्कालिक दशा अच्छी है वा नहीं । इस जांचका परिणाम यह हुआ कि पार्लीमेंटको यह मालूम होगया कि भारत दिनों दिन गरीब होता जा रहा है और अन्तमें कंपनी सरकारके हाथसे राज्य निकल गया, तथापि आज निम्न समुदायकी दशा कैसी गिरी हुई है, इसे देखिए। . " यदि भारतके वृद्ध पितामह दादाभाई नवरोजीके विषयमें कहा जाय कि उन्होंने भारतकी दरिद्रताका ज्ञान प्राप्त करने में
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org