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जैनहितैषी
चाहिए और प्रत्येक तीर्थपर अपने स्वत्वोंकी रक्षा करना चाहिए। जो लोग तीर्थोंके झगड़ोंको आपसमें निबटानेकी सम्मति देते हैं वे दिगम्बर धर्म तथा विधर्म ( श्वेताम्बर ) को एक करना चाहते हैं। मालूम नहीं ये लोग विधर्मियोंके सामने क्यों अपनी मनुष्यताको खोकर गिडगिड़ा ते हैं और अपनी दीनता दिखाते हैं । इत्यादि। बड़े अफसोसकी बात है कि जो लोग प्रतिवर्ष मुकद्दमेवाजीमें लाखों रुपयोंको पानीकी भाँति बहते देखकर, भाईभाईमें द्वेषकी वृद्धि होते देखकर, संघशक्तिका घात होते देखकर आपसमें निबटारा कर लेनेकी सम्मति देते हैं वे तो मनुष्यताको खोनेवाले समझे जायँ तथा साधारण जनताको उनके विरुद्ध भड़कानेके लिए दिगम्बर श्वेताम्बर सम्प्रदायको एक कर डालनेवाले करार दिये जायँ और जो देशका समाजका सर्वनाश करनेवाली मुकद्दमेवाजीके लिए उत्तेजन दिलावें वे मनुष्यश्रेष्ठ और परमधर्मात्मा बननेका दावा करें : यह कहा गया है कि श्वेताम्बरसमाज हमसे द्वेष करता है, हमारे न्याय्य स्वत्वोंकी छीनना चाहता है और आपसमें निवटारा करनेके लिए बिलकुल तैयार नहीं है, तब हम क्यों न मुकद्दमें लडें ? संभव है कि इस कथनमें बहुत कुछ सत्यता हो; श्वेताम्बर समाजमें भी हमारे समाजके जैसे कट्टर धर्मात्माओंकी और धर्मान्धोंकी कमी नहीं है; परन्तु क्या इससे आपसमें निबटारा करनेका आन्दोलन या प्रस्ताव मनुष्यताको खोनेवाला हो गया, अथवा क्या कभी आपसमें निबटारा होना संभव ही नहीं है, ऐसा सिद्ध हो गया ? इस विषयमें अभी हमें बहुत कुछ कहना है. जिसे स्थानाभावके कारण आगेके लिए रखना पड़ा ।
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