Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 95
________________ जैनहितका कायापलट | वर्तमान ग्राहकों से प्रार्थना । है कि वे मूल्यके कुछ अधिक होजानेका जरा भी ख्याल न करें और कमसे कम एक वर्षतक और भी इसके ग्राहक बने रहें । रुपया बारह आनेका अधिक खर्च इसके लिए कोई बड़ी बात नहीं हैं । इसके सिवाय अपने मित्रोंमेंसे भी एक एक दो दो ग्राहक बना देने की कृपा करें | उपहार में एक अच्छा उपन्यास देनेका प्रबन्ध किया है । इतना अच्छा उपन्यास कि जिससे अच्छा हमारे ग्राहकोंने अपने जीवन में कभी पढ़ा भी न होगा । यह सामाजिक उपन्यास पवित्र और ऊँचे विचारोंसे भरा हुआ है । करुणरसपूर्ण है। पढ़कर पाठक रोये बिना न रहेंगे । मूल्य उसका बारह आने है । इस मूल्यमें वह खूब बिक रहा है, परन्तु हितैषीके ग्राहकोंको बिलकुल मुफ्त में दिया जायगा । उपहारी खर्च, डांक खर्च आदि कुछ भी न लिया जायगा। पहले अंकके साथ में ३ ) तीन रुपया एक आनेके वी. पी. से भेज दिया जायगा ! गत वर्ष हमने अपने ग्राहकोंसे उपहारसहित हितैषीका मूल्य २( - ) लिया था, और इस वर्ष ३) लेंगे। इस हिसाब से देखा जायगा जो पहले से सिर्फ बारह आने ही अधिक देना पड़ेंगे ! दो महीने की छुट्टी | नया इन्तजाम करनेके लिए, कवर के लिए चित्रादि बनवानेके लिए समय चाहिए, इसलिए हम दो महीने की छुट्टी लेना चाहते हैं । अर्थात् हितैषीका पहला अंक जनवरीमें निकलेगा और तभी से इसका Jain Education International ७६३ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100