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जैनहितैषी
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ऐसे समयमें जब कि कागजका भाव पहलेसे लगभग डेवढ़ा हो • गया है और छपाई आदिके चार्ज भी बड़े हुए हैं हम जो इस बहुव्ययसाध्य कामको करनेके लिए उत्साहित हो गये हैं, इसका कारण एक तो हमारे कई उत्साही मित्रोंकी अतिशय प्रेरणा है और दूसरा हमारे हृदयकी उस सोई हुई इच्छाका जागृत हो जाना है जो जैनसमाजमें एक सर्वाङ्गसुदर आदर्शपत्रको जन्म देना चाहती है । हमें विश्वास है कि हितैषीके प्रेमी पाठक हमारे इस उत्साहको बढ़ाने में सब तरहसे सहायता देंगे और हमें आर्थिक कष्टसे पीड़ित न होने देंगे । यदि इस समय उन्होंने एक ही एक ग्राहक बढ़ानेकी • कोशिश कर दी, तो जैनहितैषीका नयारूप स्थायी हो जायगा और वह जैनसमाजकी एक अभिमानकी चीज़ बन जायगा ।
मूल्य कितना रहेगा! ___ इस नये परिवर्तनमें हमें हितैषीका मूल्य अवश्य बढ़ाना पड़ेगा; परन्तु अपने ग्राहकोंको हम विश्वास दिला सकते हैं कि यह मूल्यकी वृद्धि हम अपने लाभ या मुनाफ़ेके लिए नहीं करते हैं। हितैषीसे हमें कभी मुनाफा हुआ नहीं और हम इससे मुनाफेकी आशा रखते भी नहीं हैं । यदि इसका खर्च इसमें ही निकल आया करे, तो हम सन्तुष्ट हैं । हम अपने परिश्रमके बदलेमें इससे एक पैसेकी भी आशा नहीं रखते हैं। हमने जो नये वर्षके खर्चका हिसाब लगाया है, उसके अनुसार इसका मूल्य तीन रुपयसे कम नहीं रक्खा जा सकता है । और इस मूल्यमें भी तब पूरा पड़ेगा जब हमारे वर्तमान ग्राहक ज्योंके त्यों बने रहकर कमसे कम २०० ग्राहक और भी बढ़ जाय । इस कारण
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