Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 99
________________ लन्दनके पत्र । यह पुस्तक हाल ही छपकर तैयार हुई है। इसमें एक देशहितैषी वैरिस्टर हबने विलायतसे जो पत्र भेजे थे, उन सबका संग्रह है । पत्रोंमें भारतवायोंके लिए देशसेवा, जातिसेवा, साहित्यसेवा करनेका संदेशा है । बड़ी ही शीली, उत्साहवर्धक और देशभक्तिपूर्ण बाते लिखी हैं। प्रत्येक नवयुवाको यह तक पढ़ना चाहिए । विलायतकी बहुत सी जानने योग्य बातें भी इससे लूम होंगी । इसमें ऐसी ऐसी पचासों अंगरेजी पुस्तकोंके नाम बतलाये हैं नका यहाँकी देश भाषाओंमें अनुवाद होना चाहिए । मूल्य इस पुस्तकका र्फ तीन आने है। मितव्ययिता। सी. पी. और बरारके स्कूलोंकी लायब्रेरियोंके लिए ओर विद्यार्थियोंको नाम देनेके लिए इस पुस्तकको सरकारने मंजूर कर लिया। बड़ी ही अच्छी स्तक है। प्रत्येक जैनपाठशालामें भी इस पुस्तकको इनाममें देनेकी व्यवस्था ना चाहिए । जनसमाजमें फिजूल खर्ची और विलासिता सबसे अधिक बढ ही है और इस पुस्तकमें इन दोषोंको दूर करनेकी आश्चर्यकारिणी शक्ति है । स लिए इसका जैनोंमें जितना अधिक प्रचार हो उतना अच्छा । इसे बाबू याचन्दजी बी. ए. ने स्माइल्सके 'थ्रिफ्ट' नामक ग्रन्थके आधारसे लिखा । मूल्य चौदह आने । इनामम देने योग्य और आर पुस्तकें । नेताके उपदेश मू ल्य चरित्र गठन और मनोबल च्छी आदतें डालनेकी शिक्षा ॥ सफलता मैनेजर, हिन्दी-ग्रन्थरत्नाकर, कार्यालय, हीराबाग, पो. गिरगाँव-बम्बई. Printed by C.S. Deole, at the Bombay Vaibhav Press, Servants of India Society's Building, Sandhurst Road, Girgaon Bombay, & Published by Nathuram Premi at Hirahag, Near C. P. Tanki Girgaon, Bombay. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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