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विविध-प्रसंग |
से उसके पास बहकर पानी आता रहा । वही पानी पीता था और सो रहता था । हिलने डोलनेकी उसे जगह न थी ।
इतने काल तक वह कैसे जीता रहा ? यदि हम अपना शरीर बिल्कुल स्थिर रक्खें, तनिक भी न हिलें डोलें तथा ऐसी जगह में पड़े रहे जहां गरमी न घटे न बढे और पानी पीनेको मिलता जाय तो भोजनके न मिलनेपर भी हम बहुत दिनोंतक जीते रह सकते हैं। ऐसी दशामें शरीर अपने ही आधार पर जीता है। मनुष्य · तथा और देह-धारियों में चर्बीका भाग अधिक होता है जो भूखे रहने की हालत में खर्च होता है। इससे मांस, रुधिर, मज्जा और मस्तिष्कका पोषण होता रहता है; परन्तु शरीर दुर्बल होता जाता है, चर्बी कम होती है, चमड़ा सूख कर सख्त हो जाता है और दिल और दिमाग हलके होते जाते हैं। पहले दो तीन दिन तक भूख सताती हैं, फिर धीरे धीरे सुस्ती आती जाती है । यदि मनुष्य इसी तरह छोड़ दिया जाय तो बिना कष्टके कुछ दिनों में मर जाय । अनुकूल दशामें अन्न बिना मनुष्य साधारणतः चालीस दिनों तक जीता रह सकता है, यह तो पाश्चात्य विद्वानोंका मत है । भारतीय तपोधन ऋषि मुनि इससे कहीं अधिक काल तक अन्न बिना जीवन रक्षा करते हुए सुने गये हैं । - ( विज्ञानसे ) ६ मुकद्दमेवाजीका उपदेश ।
जम्बूस्वामी मथुराके मेले पर अभी हाल ही दिगम्बरजैनतीर्थक्षेत्र कमेटीका अधिवेशन हुआ है । उसके सभापति महोदयन अपने व्याख्यानमें दिगम्बर जैनसमाजको खूब ही उत्तेजित किया है और कहा है कि तन-मन-धन न्योछावर करके मुकदमे लड़ना
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