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जैनहितैषी
- " अन्तमें निवेदन है कि हमें इस पत्रका उत्तर अवश्य दिया जाय, जिससे हम लोग किसी ठिकानेसे लग जायँ । इस समय तो हमारी बड़ी ही दुर्दशा है। इधर आप लोग हमें पास नहीं. आने देते हैं और उधर दूसरे लोग हमें जैन समझते हैं। इस तरह हम दोनों ओरसे धक्के खा रहे हैं । क्षमा कीजिए, हम लोगोंने जो इतना कहनेका साहस किया है, सो इसका कारण केवल हमारे शरीरमें होनेवाला आपके खूनका प्रबाह और पवित्र धर्मका प्रेम है।"
४ भारतकी दरिद्रता। __ कुछ दिन पहले धूलियावाले सेठ गुलाबचन्दजीके व्याख्यानकी समालोचनामें सेठ हीराचन्द नेमीचन्दजीने सोने चाँदीकी आमदरफ्तका हिसाब बतलाकर प्रकट किया था कि भारत दरिद्र नहीं, किन्तु धनी होता जा रहा है । सेठजीके इस बड़े भारी भ्रमको दूर करनेके लिए हमारे सुयोग्य मित्र श्रीयुत संशोधकजीने एक अर्थशास्त्र सम्बन्धी लेख लिखकर भेजा है जो अन्यत्र प्रकाशित किया जाता है । आशा है हमारे पाठक उसे ध्यानसे पढ़ेंगे और इस प्रश्नकी सब बाजुओंको अच्छी तरहसे समझ लेंगे। भारत पहले बहुत बड़ा धनी था, पर अब यहाँके लोगोंकी दशा दिन पर खराब होती जाती है । इस बातको श्रीमती एनी विसेन्टने अपने इंग्लैंड और भारतवर्षके निकष्ट वर्ग' विषयक व्याख्यानमें स्पष्ट शब्दोंमें स्वीकार किया है । व्याख्यानका उक्त अंश हम सहयोगी प्रतापके अनुवादमेंसे यहाँ उद्धृत किये देते हैं:-- ___“एक मुसलमान सरदारके पांच मन जवाहिरात लेनेका उल्लेख भारतके इतिहासमें है। आज यह बात आपको पुराणोंकी कथा
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