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जैनहितैषी -
परिश्रम किया है यदि वही परिश्रम खड़ी बोलीकी रचनामें करते तो हिन्दीभाषाभाषियोंका और भी अधिक उपकार होता । पुस्तकके प्रारंभमें २५ पृष्ठकी विस्तृत भूमिका है जिसमें भवभूति, उनकी रचना, और इस नाटककी विशेषताओंका विवेचन किया गया है । | भूमिका के पढ़नेसे भवभूतिके और उनके ग्रन्थोंके सम्ब न्ध में अनेक जानने योग्य बातोंका ज्ञान होता है । पुस्तक सब तरहसे अच्छी और संग्रहणीय है । साहित्यप्रेमियोंको इसकी एक एक प्रति मँगाकर प्रकाशकोंके उत्साहको बढ़ाना चाहिए ।
आत्मतत्त्वप्रकाश | अनुवादक, पं० ज्वालादत्त शर्मा, किस रौल ( मुरादाबाद ) । प्रकाशक, लाला गणेशीलाल लक्ष्मीनारायण मुरादाबाद | यह पुस्तक महामहोपाध्याय डा० सतीशचन्द विद्याभूषण एम. ए., पी. एच. डी. के एक बंगला निबन्धका अनुवाद है । पुस्तक बड़े महत्त्व है। प्रारंभके ३४ पृष्ठोंमें भारतीय दर्शनशास्त्रों का इतिहास है जो बड़ी खोजसे लिखा गया है और फिर आत्मा, जन्मांतरवाद, ईश्वर आदिके सम्बन्धमें भारतीय दर्शन शास्त्रोंके सिद्धान्त लिखे गये हैं । विद्वानोंको ऐसी पुस्तकोंका अवलोकन अवश्य करना चाहिए । मूल्य पुस्तकपर लिखा नहीं, लगभग चार आने होगा ।
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फ़िजी द्वीपमें मेरे इक्कीस वर्ष । लेखक, पं० तोताराम सनाढ्य । प्रकाशक, भारती भवन, फीरोजाबाद ( आगरा ) । मूल्य छह आने । लेखक महाशयने इसमें आपबीती कहानी लिखी है। आप आरकाटियोंके हाथमें पड़कर जबर्दस्ती फिजीद्वीप में भेज दिये गये :
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